Sunday, November 27, 2022

अस्ति नास्ति

आशा अस्ति, प्रकाशः अस्ति

निशा अस्ति, तिमिरः अस्ति।

अस्ति सर्वं किञ्चित्कालपर्यन्तं

यद्नास्ति सर्वमप्रियम् अस्ति।

यत् सर्वं प्रियम् अस्ति 💗

तदज्ञातम्, अनभिज्ञम् अस्ति ॥

Monday, February 22, 2021

बहारें आएँगीं

बहारें आएँगीं, नवकमल प्रफ़ुल्लित होंगें

पहले की तरह शामें और दिन खिलेंगे 

राही एक नई उमंग के साथ चलेंगें

डर को कर दरकिनार, रास्ते मज़िलों से मिलेंगें

भीड़ में, वही पुराना अन्दाज़ आएगा 

जब सब हँस-हँस कर पास-पास रहेंगें

मुखौटे उतरेंगें, दस्ताने हटेंगे

दूर से नहीं, पास जा कर गले मिलेंगें

बहारें आएँगीं, नवकमल प्रफ़ुल्लित होंगें

आशान्वित हम सब, कि अब 

बहारें आएँगीं, नवकमल प्रफ़ुल्लित होंगें।

                                - उषालेखन्या

Wednesday, February 3, 2021

होड़

 

पानी में जलीय जीव,आकाश में पंछी

धरती पर सब जीव और इंसान 

किसको नहीं है तृष्णा  

तृष्णा उसकी जो है तो पास 

फिर भी जिसकी है हमेशा आस 

खुद को पाकर भी  खो जाने का अहसास 

खुद को जिंदा रखने की आस 

खुद को सबसे आगे रखने की प्यास

कभी ख़ुद जीत कर तो कभी दूसरों को किसी भी तरह हरा कर 

सबसे आगे निकल जाने की आस 

इन्सानों की इस भीड़ में काश याद रख लेते हम सब

कि हर एक की है अपनी शख़्सियत ख़ास 

जिसमें से एक है अपनी तो दूसरी है ज़माने के साथ साथ 

बदलें हम अब उस ख़ास कोबनाएँ एक आम इन्सान

जिसे जीने के लिए चाहिए बस रोटीकपड़ाऔर मकान 

फिर क्यों है ये होड़ जो मचा रही है कत्ले आम , 

बिना अस्त्रशस्त्र के कर दिया जिसने सबको बेजान

जबकि जीने के लिए सिर्फ़ वही तो थी गुहार 

वही रोटी कपड़ा और मकान 

वही रोटी कपड़ा और मकान 

                        - उषालेखन्या 



दौड़

  

आज और कल की इस दौड़ में

न सोता न जागता इंसान

सोता तो सैकड़ों ताना बाना लिए

और जागता तो करोड़ों आशाएँ लिए

आज और कल की इस दौड़ में

न सोता न जागता इंसान।

 

ज़िंदगी की भागदौड़ में

हज़ारों सपने लिए

चमचमाती असंख्य आँखें

टिमटिमाते सपने लिए

आज और कल की इस दौड़ में

न सोता न जागता इंसान।

 

होगी सत्यता साकारता

इस सोच को करे जीवंत

आकांक्षाएँ और तृष्णाओं को साथ लिए

आज और कल की इस दौड़ में

न सोता न जागता इंसान।

                           -उषालेखन्या

आशा की किरण

आशा की किरण एक बच्चे की आँखों में 

उन प्रज्ज्वलित आँखों की चमक कहती है- माँ

आशा की किरण एक मज़दूर की साँसों में                                       

 उसकी उमड़ती साँसों की रफ़्तार कहती है- विश्राम

आशा की किरण एक भूले हुए पथिक में 

 उसकी त्वरित मुखरित चाल कहती है- विराम 

आशा ही तो है जो सबको अग्रणी भूमिका देती है

आशा ही तो है जो सबको वितरित उत्साह करती है

आशा की वही एक किरण  जो सबको चलते रहने की राह देती है।

                                                                        - उषालेखन्या

बीस तारीख़

 आज फ़िर बीस तारीख़ है 

मन बेचैन है एक जगह सूनी है

आँख़ों में वो चेहरा, कानों में वो गूँज अभी सुनी है

दिल में एक कसक, होंठों पे एक नाम

दिमाग़ में वही बात, आज फ़िर बीस तारीख़ है

लाता अपने साथ कुछ नहीं न्सान है  

फ़िर दे जाता क्यों इतनी याद है

जब जी चाहे आ जाए कहीं से भी

रात हो दिन हो या हो सुबहोशाम

ख़्याल में वही बात, आज फ़िर बीस तारीख़ है

जो आया है उसने जाना है यही बस एक फ़साना है

फ़िर भी इन्सान कर रहा अपनी चीज़ों से इतना मोह प्यार है

सवाल में भी वही बात, क्यों आज बीस तारीख़ है?

एक साल बीता बिन पुकारे, आज वही बीस तारीख़ है?

जिसमें गईं थीं वो छोड़कर, आज वही बीस तारीख़ है? 

                                         - उषालेखन्या

Sunday, August 27, 2017

जीवन


जीवन है जीना , जीवन है मरना                                जीना हर खुशी पर, मरना हर ग़म पर

जीवन है दौड़ , जीवन है मौज
दौड़ना हर कदम पर, मौज दौड़ की जीत पर

जीवन है साँस , जीवन है आस           
साँस सब  सहना, आस अच्छे की प्रतीक्षा में रहना

जीवन है मिलन, जीवन है विरह
मिलन विचारों का, विरह विचारों से

जीवन है भूख, जीवन है प्यास
भूख खुशी की, प्यास खुशी पाने की

जीवन है सफलता, जीवन है विफलता
सफलता समझने की, विफलता खुद को समझाने की

जब तक  जीवन, तब तक अपनत्व  
जीवन कुछ करने का स्वप्‍न 

क्योंकि जीवन है जीना, जीवन है मरना
जीवन है जीना, जीवन है मरना....

                                                    - उषालेखन्या  

अस्ति नास्ति